समय
समय
वक्त के साथ-साथ थकान का एहसास बढ़ते जा रहा है
समय की रेत धीरे धीरे हाथों
से फिसलती जा रही हैं
शरीर थोड़ा ढीला पढ़ते जा रहा है
मेरे होंठ मुस्कुरा उठे हैं
याद आ रही है भविष्यवाणी ज्योतिष ने कहा था कि तुम्हारे पैरों में यात्रा योग है
सच ही कहा था, कर रहे हैं यात्रा
पीठ पर बच्चे को लादे, सर पर गठरी लिए
भूखे प्यासे लगातार कई दिनों से
होंठ फिर मुस्कुरा दिए
पांव से कांटा निकालते हुए देखा पांव में छाले आ गए हैं ज्योतिष ने हाथ की रेखाएं देखी थी
शायद तलवों पर उभरी लकीरें नहीं पढ़ीं थी
जिसमें कोरोना का कहर,
लंबे सफर की बद्दुआऎं लिखी थी
मैंने तो अपनी ओर से पूरी कोशिश की थी
उन्हीं रास्तों को चुना था जो परिवार का पेट भर सकें और तरक्की पसंद हों
पर मालिकों की उदासीनता, सियासत के रंग और
कोरोना के प्रकोप ने उच्चतम शिखर पर पहुंचने के बाद
भी वापस ला पटका था शायद इसीलिए कहते हैं समय बहुत बलवान है
