समय से
समय से
गुजरते हुये समय से
छिटका हुआ
एक लम्हा हूँ मैं।
डूब रहा है मुझमें इतिहास
अब तक का
उग रहा है एक सूरज मुझमें
आगत का,
नाम दो तो समय ही रहेगा।
गुजरते हुए समय से
छिटका हुआ
एक लम्हा हूँ मैं,
दामन में है मेरे मनुष्य,
मुझपर चढ रहा है
उसकी मनुष्यता का रंग
और मुझमें बोल रहा है मनुष्य।