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संजय असवाल "नूतन"

Abstract

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संजय असवाल "नूतन"

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समय का पहिया

समय का पहिया

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हर घर कुछ कहता है, 

ऐसा कहते हुए सुना है,

मैंने अक्सर,   

पर जब खामोश दरों दीवार के पीछे से झांकते,

उस बूढ़े को बाहर ताकते हुए देखता हूं, 

तो उसके चेहरे की झुर्रियां,

एक लंबा सफर तय करने के बाद,

वक्त से हारे बेबस,

किसी अपने को धुंधली नजरों से इधर उधर देखते,खोजते,

और उनके ना होने के दर्द की बयानगी जो उनके चेहरे पर झकलती है, 

साफ नजर आता है,

नजर आता है,

कैसे बच्चे बड़े होकर,

अपने मां बाप को,

जिन्होंने उनके लिए अपना समय,

खून का कतरा कतरा दिया,

अपने मुंह का निवाला भी खुशी से दे दिया,

खुद भुखे पेट कई रात सोए,

वो उन्हें ही ठुकराकर,

आज खुद को अपनी किस्मत का, 

इस वक्त का शहांशाह समझने कि भूल करने लगे हैं,

पर वक्त एक सा नहीं रहता,

समय का पहिया घूमता जरूर है,

अपने नियत समय में।


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