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Surendra kumar singh

Abstract

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Surendra kumar singh

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समय है हम हैं

समय है हम हैं

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जिंदगी है, समय है हम हैं, सफर है

बीती हुयी रात का पहला पहर है

याद में है रात की अठखेलियाँ

सामने एक और होती सुबह है


खो गयी थीं नींद, लो अब सामने है

इस शहर में और भी कितने शहर हैं

सोच की तो कोई बैशाखी नहीं है

जिंदगी है फिक्र है,ताजी खबर है

 

झाँकते हैं दूर से अब तक अंधेरे

रौशनी है बाढ़ है डूबी बसर है

गुनगुनाहट है सुरीली भोर की ये

उग रहे हैं शब्द, उनकी नजर है।


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