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"स्मृतियाँ"

"स्मृतियाँ"

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कमबख्त़ यादों ने, रात भर सोने ना दिया

ख्वाबो के हवाले, नशे मन होने न दिया।

चाहा तो बहुत रो लू जार-जार

पर इस मर्दानगी ने मेरी तकिया भिगोने ना दिया।

इजाज़त नहीं होती मेरे आंसू को अशगोल से निकल जाने की

तेरी बातों ने भी उनको बेवफा होने ना दिया।

कहाँ रहा जाम मे वो सरूर ऐ साथी

तेरे गम के नशे ने कभी हमे चैन से बहकने ही न दिया।

जाने कब चहलकदमी-सी करके

आ जाए बुलावा मेरा

मिट्टी पे सजे बिस्तर

हो अाग पे कलेवा मेरा

बस यही सोचकर तो

कभी उदास यूं होने ना दिया।

हर शै मेरी प्यासी है

तेरे दीदार की

एक बार तो मिल जा कहीं

रस्मो से सरोकार नहीं

तोड़ के सारे बन्धन रिश्ते

रिवाज़ आ जाऊ पास तेरे

पर कमबख्त़ इस ज़िन्दगी ने

सांसो की डोरी को टूटने ही ना दिया।

इक रोज़, मिलूंगा चिर निद्रा मे

अटूट प्रेम के साथ अगाथ स्नेह लेकर।

आज़ाद होकर सब बन्धनो से।

फिर से आपके सानिध्य मे अपना बचपन पालने

गोद मे सोने के लिए छाती पर सर रखने को।

वो मुस्कान मेरी देखकर मुस्कुराते चेहरे को देखने।

माँ बाबा आपके वियोग ने इस जीवन को जीवन रहने ना दिया।

हाँ, आप ही की सुखद यादो ने कभी मुझे सोने ना दिया

मेरे गम ओ खुशी को हँसी मे पिरोने ना दिया।

आ जाओ लौट कर अब वरना कहोगे,

पागल ने चैन से रहने ही ना दिया।


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