समर्थ गुरू।
समर्थ गुरू।
आओ हम तुम सबको प्रभु मिलन, की सरल युक्ति बतलाते हैं।
देन है एक गृहस्थ वीतराग पुरुष की, जो "समर्थ चतुर्भुज" कहलाते हैं।।
जब भारत जकड़ा था सामाजिक कुरीतियों में, आध्यात्मिक चेतना का परचम है लहराया।
शास्त्रीय मार्ग को स्थापित करके, जीवों के उद्धार का मार्ग है बतलाया।।
स्थापना की "रामाश्रम सत्संग" की, मथुरा नगरी को धन्य बनाया।
अध्यात्म ज्ञान के सुंदर बीजों को, रोपित कर सुंदर पुष्प खिलाया।।
भक्त वात्सल्य की परंपरा को, संतप्त जीवों पर कृपा बरसाई।
जात -धर्म संप्रदाय से हटकर, एक निराली साधना सिखलाई।।
ईश्वर दर्शन की नवीन शैली, कर्म- योग की साधना है अपनाई।
प्रभु कृपा की अलौकिक भक्ति, सब योगों से महान है कहलाई।
समदर्शी है नाम उनका, बेगराज सब पर है फैज बरसाया।
बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय अपनाकर ,प्यार से सबको गले लगाया।।
गुरु शिष्य का संबंध तोड़कर, पिता-पुत्र की शैली अपनाई।
प्रेम की पाठशाला भंडारा में, विश्व प्रेम की ज्योति जलाई।।
नारी शक्ति के सम्मान के कारण, गृहस्थ जीवन को मधुर बनाया।
दांपत्य जीवन में ही रहकर ,आत्मज्ञान का रसपान कराया।
गृहस्थ जीवन को सुगम बनाकर, साधना पथ का मार्ग है बतलाया।
" नीरज" तो धन्य है "समर्थ गुरु" का, जिसने इस पापी को अपनाया।।