समिधा
समिधा
रंगों के इस पावन पर्व पर
मेरे हृदय का
सारा आकाश
बृजभूमि हुआ जा रहा है
और
तुम्हारे इन पलाश-वन
नेत्रों का
अबीरी रंग
मुझमें
महारास जाग्रत कर रहा है
तुम्हारी दृष्टि का गुलाल
मुझे लज्जारंग में
भिगोय दे रहा है
प्रिय !
यह
तुम
जो अपनी दृष्टि में नेत्रों में
पलाशों का दहकता
अग्निकुंड
लिये फिरते हो
मेरे अस्तित्व की समिधा
स्नेहपूरित हो
उसमें हव्य होने
को आतुर है।