मेरे ह्रदयाकाश में उगते सूर्य
मेरे ह्रदयाकाश में उगते सूर्य
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प्रभाती गाते
पंछियों के साथ
मेरे हृदय के आकाश में
उदित
मद-भरे अलस
नेत्रों से
देखते सूर्य!
तुम अपनी दृष्टि में
क्यों इतना श्रृंगार
लिये फिरते हो,
कि तुम्हारे
इस रास-रंग से
रात्रि में
चंद्रमा तक आलोकित
हो उठता है।
सुनो ! तुम
अपनी विविध वर्ण- किरणों
से जो फाग
रोज़ खेलते हो
वह क्या
मात्र उषा का अभिनंदन
और संध्या का वंदन ही है
या फिर
तुम्हारे रास-रंग में
भीगते
चंद्र का अभिषेक भी?