समाज में नारी
समाज में नारी
खुशबू है फैलाती, समाज में नारी
मुस्कान है दिलाती, मैं जाऊँ बलिहारी।
क्या-क्या नहीं सहती, समाज में नारी
फिर भी नहीं सहमती, समाज में नारी।
ममता की तू है क्यारी,
सबसे ज़्यादा तू संस्कारी।
कभी न थकती, चलती रहती,
सबसे सबल है समाज में नारी।
नारी से ही हरी-भरी है,
सबके आँगन की फुलवारी।
वैसे तो है कोमल प्यारी,
पर वक़्त पड़े तो बन जाती है,
चंडी-काली ,समाज में नारी।
बेटी बनकर जन्म लेती,
बहू बनकर निखरती नारी।
फिर बच्चे को जन्म देकर,
माँ कहलाती समाज में नारी।