सियासतदान
सियासतदान
सियासतदान ने मचाया कहर,
मज़हब के नाम से बाँटा ज़हर,
चाहे गाँव हो या कोई भी शहर,
मुल्क़ में फैली आज़ादी की लहर।
तानाशाही हुकमरान को दिख रहा है सराब,
बेसब्र अवाम कर रहा है तीखे सवाल जवाब।
तेज़ाब जैसा ख़तरा हो सकता है जन-सैलाब,
समंदरी ज़लज़ला सा बन सकता है इंकलाब।