सिलसिला
सिलसिला
मजबूरी में तू जब छोड़ कर चला गया
फिर सॉरी बोल कर, क्या सब ठीक हो गया।
गिने है मैने, तू जो ज़ख्म दे गया
भर जाते वो भी, मगर मेरा वक़्त ठहर गया।
शक की नजरों में तू मुझे घेरने लगा
आखिरी दिन बे-नकाब मगर तू हो गया।
माना दिल तेरा बच्चा जरूर था
मगर हवस का शिकार फिर क्यों, करने लग गया।
मैंने तो सात जनम तेरे नाम कर दिए
लेकिन तू किसी और पर अब मरने लग गया।
अपना भी लेती मैं तुझे लेकिन
हर बार का तूने ये सिलसिला बना दिया।