सीता की अग्नि परीक्षा कब तक
सीता की अग्नि परीक्षा कब तक
सीता एक नारी थी
सबकी राजदुलारी थी
रावण ने अपहरण
सीता का जो किया था
नैतिकता इतनी थी कि
बल पुर्वक ना छला था
ना सीता को स्पर्श किया
ना कोई जबरदस्ती की
स्त्री की इज्जत और
मान मर्यादा का पाठ
रावण ने सिखलाया था
परायी स्त्री को हात ना
लगाया था
अतिथी समान
आवभगात कि का
खातिर दारी में कोई
कोताही नहीं बरती
पर राम की तो वह पत्नी थी
जिवनभर की जीवन संगीनी थी
राजा का चरित्र
प्रजा का होता है आईना
राजा से फिर चूक हुई कैसे
क्यो ना रखी पत्नी की गरिमा
विश्वास कि कहाँ कमी आयी
चरित्र पर शक की सुई घुमायी
गर सीता थी रावण के पास
राम भी तो अकेले थे
फिर क्यो किया परित्याग सीता का
संदेह तो वह भी कर सकती थी
पर स्वीकार किया सहर्ष उसने
क्या यह लोकलाज का था बहाना
या था फिर मन का वहम
स्त्री पुरुष समानता ढकोसला भर
लगता है
सदियो से पुरुष द्वार नारी का
शोषण किया जाता है
समान्य जनो की बात छोडो
राम राजा भी इसे अपवाद नहीं
सत्ता चाहे किसी की भी हो
स्त्री का मान सन्मान नहीं
न जाने समाज की मानसिकता
बदलेगी कब
गैरो द्वारा लगायी यह आग
न जाने बुझेगी कब
प्रश्न उठता है अब
इम्तीहान स्त्री का ही क्यो
कबतक अग्निपरिक्षा देगी सीता
कब तक जलती रहेगी सीता
एक गलती सदियो पर भारी पड़ गयी
सिध्द करने पवित्रता लाखो स्त्रिया
अग्निशीखा हो गयी
गलत फैसले रीतिरिवाजों में जुड़ गये
संस्कारो के नाम पर
अत्याचार सदाचार हो गये
त्यागना स्त्री का निहायत
काम शर्मनाक था
विश्वास को बली
चढ़ाना प्यार भरे रिश्ते
का अपमान था
आओ करे हम प्रण यह
अब न जले कोई भी सीता
ना हो तार तार किसिका भी मान
इज्जत विश्वास का ना हो खून
माता बहनों पर हमें अभिमान हो।