सीखे-सिखाए लोग
सीखे-सिखाए लोग
एक एनसीसी का कमांडिंग ऑफिसर मुझसे कहता है,
"मैं एनसीसी में हूं,
इसलिए तुमसे बेहतर चलना सीख लिया।"
एक थिएटर आर्टिस्ट मुझसे कहता है,
"तुम्हारी बोलने की पिच सही नहीं है,
मैंने बोलना सीखा है,
इसलिए सही डायलॉग डिलीवर कर देता हूँ।"
एक मोनोएक्टिंग करने वाला भी समझा देता है मुझे,
कि मेरे हावभाव सामने वाले को समझ में नहीं आते,
उसने सीखे हैं हावभाव से दूसरों को समझाना।
एक लेखक मुझसे कहता है,
"तुम्हारी शब्दावली कमजोर है,
मैंने व्याकरण और अलंकार सीखे हैं,
इसलिए मैं भावनाओं को खूबसूरती से पिरो सकता हूँ।"
एक गायक मुझसे कहता है,
"तुम्हारी सुर और ताल सही नहीं हैं,
मैंने रियाज किया है,
इसलिए मेरी आवाज में संगीत बसता है।"
एक चित्रकार मुझसे कहता है,
"तुम्हारे रंगों का चयन ठीक नहीं,
मैंने कैनवास पर कला उकेरना सीखा है,
इसलिए मैं खूबसूरती रच सकता हूँ।"
मैं हौले से जवाब देता हूँ,
एक वक्ता मुझसे कहता है,
"तुम्हारी भाषा में प्रवाह नहीं है,
मैंने शास्त्र और वाकपटुता सीखी है,
इसलिए मैं जनता को प्रभावित कर सकता हूँ।"
वो बात और है कि,
मैंने सीखा है धक्का खाने के बाद उठकर थोड़ा बहुत चल लेना,
खामोश रहते हुए भी कुछ कह लेना,
बिना आँसू बहाए रो लेना,
ना लिखी कविता पढ़ लेना, जो बनाने वाला कहता है, लिखने वाला नहीं।
सीखा है, धड़कनों की धुन को सुनते हुए,
बेरंग जीवन के साथ जीना भी।
और, सीखा है लड़खड़ाते सच कहना।
सच कहूँ,
मेरे लिए इतना ही बहुत है कि,
वे सीखे-सिखाए लोग,
अपनी तुलना मुझसे कर लेते हैं।
जिसे सीखा नहीं कलाओं को, जीवन को भी नहीं।
और, ये सब बातें तब सुनीं जब मैंने आँखें, कान और मुँह बंद कर रखे थे।
और, अब सिर्फ मुँह ही खोला है।
