सीख दे दिया कुदरत ने
सीख दे दिया कुदरत ने
देख धरा पर तहस नहस का ,
खेल रच दिया कुदरत ने ।
विश्व विजय सपना मानव का ,
धूमिल कर दिया कुदरत ने।।
कुटिल चाल अभिमान मनुुुज का ,
नाश कर दिया कुदरत ने ।
अजब हाल है विश्व पटल का ,
शून्य कर दिया कुदरत ने ।।
घन घमंंड बढ़ गया आपका ,
बहुत चेताया कुदरत ने ।
कहां गया विज्ञान आपका ,
बहुत छकाया कुदरत ने ।।
बक बक करते ,इठलाते, बौराते आका ,
क्षणभंगुर हो मंद कर दिया कुदरत ने ।
झल्लाते , विचलित हैं दाता ,
चाल चला यूं कुदरत ने ।।
पछताते फिर आदम हव्वा ,
समझाया था कुदरत ने ।
आफ़त ऐसी आई दइया ,
नाश कर दिया कुदरत ने ।।
पैसा तुमको खा जाएगा ,
नियम बनाया कुदरत ने ।
चलन वही फिर से आएगा ,
जिसे बनाया कुदरत ने।।
ख़ुदा न होते जुदा - जुदा ,
फिर बात सिखा दिया कुदरत ने ।
पुण्य रह चले यदा - कदा ,
तो शाप दे दिया कुदरत ने ।।
शापित जन फिर लौट चलोअपनी जड़ को,
कुछ किया इशारा कुदरत ने ।
तुम जियो और संग जीने दो सबको ,
यह सीख दे दिया कुदरत ने ।।