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Shobhit Srivastava

Drama

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Shobhit Srivastava

Drama

सिग्नल पर बच्चे

सिग्नल पर बच्चे

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जब सिग्नल पर इन,

मासूम आँखों को देखता हूँ तो,

ख़ुदा की दुआएँ नज़र आती हैं।


इन आँखों में छिपे दर्द को देखता हूँ,

तो समाज की बर्बर नज़र आती है,

यह कैसी कड़वाहट है दुनिया की,

यह कैसी सच्चाइयाँ हैं ज़िन्दगी की।


जो इन मासूम-मासूम चेहरों को,

गद-गद बनना पड़ता है,

चंद कागज़ के टुकड़ों के लिए,

जहान के सामने बिलखना पड़ता है।


तपती धुप में भी यह हाथ फैलाये फिरते हैं,

अपने बचपन को भूल गरीबी से लड़ते फिरते हैं

ना मालूम है इन्हें इन सिक्कों का मोल,

ना समझ है इन्हें इस गरीबी की।


यह नादान तो बस जानते हैं,

इस लाचार पेट के बारे में,

इसकी भूख और इसकी तड़प के बारे में।


तो अगर ना फैलाये हाथ इन ने,

और नहीं छोड़ा बचपन अपना,

तो इस गरीबी से यह नहीं लड़ पाएँगे,

पेट की लाचारी से यह नहीं लड़ पाएँगे।


आख़िर यह कैसी तरक़्क़ी ?

यह कैसी चमक है इस दुनिया की ?


जो इन नन्हे मासूमों से,

इनका बचपन छीन लेती है,

इनसे इनका लड़कपन, इनकी मुस्कान छीन लेती है।


और छोड़ देती है इन बच्चों को,

बर्बाद होने के लिए,

और छोटी सी उम्र में,

ज़िन्दगी से लड़ने के लिए गिरती।


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