फ़िक्र
फ़िक्र
कितना अच्छा लगता है ना,
जब आपकी कोई फ़िक्र करता है,
आपका ध्यान रखता है,
आपका ख़याल रखता है।
हर रोज़ की जो छोटी-छोटी चीज़ें होती हैं,
किसी को उन सब चीज़ों से मतलब होता है।
भूख तो नहीं लगी ?
अच्छे से खाया कि नहीं ?
आज मूड थोड़ा ख़राब लग रहा है ?
ऐसे सवाल करता है।
जब आपकी तबियत ख़राब हो तो -
थोड़ी-थोड़ी देर में हाल-चाल लेना
आपकी दवाई, आपके खाने का
पूरा ख़याल रखना।
कभी चुपके से आके प्यार से,
आपके सर पे हाथ फेरना,तो कभी अपनी ज़रूरतों,
अपनी ख़्वाहिशों के आगे,
आपकी छोटी से छोटी ख़ुशी को रख देना।
आप लेट आए या कभी फ़ोन ना उठाए,
आपकी परेशानी से कोई परेशान हो जाए,
आख़िर यह फ़िक्र ही तो है।
कितनी मिठास छिपी है ना,
इस छोटे से लब्ज़ में,
अच्छा लगता है ना यह सोंच के,
कि कोई है आपके लिए।
तो बस यह जो फ़िक्र है ना,
इसको संभाल के रखना,
इस फ़िक्र का ख़याल रखना
कभी भी खोने ना देना इसको
कभी भी नहीं।
