श्याम मिलन की तड़प
श्याम मिलन की तड़प
गज़ब की लीला तेरी है श्याम,
मधुरी मुरली बज़ाता है।
शरद पूनमकी रातमें मुज़को,
यमुना तट पे बुलाता है।....
तेरी मुरली में पागल बनकर,
भान तु मुज़को भूलाता है।
रास लीलामें नाच नचाकर
फ़िर क्युं छूप जाता है ?...
कुंज़ गली में तुज़े ढुंढकर,
बिरहा की आग में ज़लाता है।
दर्द दिवानी बनाकर मुझको,
प्यारमें क्युं तड़पता है ?
वापस आजा है गिरिधारी,
इन्तज़ार क्युं कराता है?
तेरे शरण की दासी "मुरली"
बावरी क्युं तु बनाता है?
रचना-धनजीभाई गढीया "मुरली"