शून्यता
शून्यता
याद करो तुम,
प्रियवर मेरे।
जब मिले थे,
हम पहली बार।
जहाँ से हुई थी,
सफ़र की शुरुआत।
बस मैं थी,
बस तुम थे।
और कुछ नहीं,
था हमारे पास।
पर हाथों में था हाथ,
हर पल का साथ।
आज इन..
सात कदमों में,
आ गए हम,
कहाँ से कहाँ।
लगे आंरभिका जहाँ।
कहीं भीड़ में मशगूल मैं,
कहीं भीड़ में मशगूल तुम.
आज है हमारे पास..
सब कुछ पर,
कहीं दूर मैं,
कहीं दूर तुम।
क्या कहूँ मैं,
तुम्हें नैन भर,
देख लेना चाहूँ
क्या कहूँ जो मैं,
तुम्हें यूँ हीं,
छू लेना चाहूँ
क्या कहूँ जो मैं
कुछ पल,
जी लेना चाहूँ।
क्या समझूँ मैं इसे
अपनी आतुरता !
अपनी अधीरता !
या
अपनी व्याकुलता!
या मैं समझूँ
"देव" तुम्हारी धीरता।
या मैं समझूँ
"वंदे " तुम्हारी
शून्यता !