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शून्यता

शून्यता

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सब कुछ है पर कुछ भी नहीं, 

इस भीड़ में मैं अकेली भी नहीं, 


खुश होकर भी मैं खुश नहीं, 

दुखी होकर भी, दुखी नहीं, 


सब चाह कर भी चाहिए कुछ भी नहीं, 

सब भूल कर भी भूली कुछ भी नहीं, 


सब देख कर भी देखा कुछ भी नहीं, 

आज हुई हूँ चिड़चिड़ी, पर गुस्सा फिर भी नहीं,


मुझमें दिल होकर भी जैसे दिल है ही नहीं, 

सोचा सब एक कागज़ पर उड़ेल दूँ,


पर स्याही ही नहीं हाथ उठा ही नहीं, 

मानो दिमाग में नशा सा हो, 


पर है कुछ भी नहीं...।


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