शुक को दाना खिलाना
शुक को दाना खिलाना
सजी-धजी पारसी स्त्री सिर पर कपड़ा लपेटे
कान में लटकते झुमके नाक में नथ पहने
फूल सजी किनारी की सुन्दर नीली साड़ी पहने
पूरी आस्तीन का सफेद ब्लाउज़ धारण किये
महिमामयी मुद्रा में पूरी तन्मयता से मनोयोग से
पिंजरे में बन्द कीर को कुछ दाना खिला रही है।
उसका पूरा ध्यान सुग्गे को दाना देने पर है
बायॉं हाथ उसका कमर पर रखा है जिसमें
हाथ में कुछ सामान थैला जैसा पकड़ा हुआ है
कमर के पास ही एक नन्हीं बच्ची सटी खड़ी है,
बच्ची का रोता सा मुँह और विस्फारित नयन हैं
पर लगता है मॉं का ध्यान बच्ची की ओर नहीं है।
बच्ची की तरफ़ से मॉं एकदम निस्पृह सी लगती है
जबकि बच्ची मॉं की साड़ी की तह को पकड़े खड़ी है
लगता है कि वह कुछ कहना चाह रही है क्षिप्रता से।
इस चित्र के पारसी चित्रकार पेस्टोनजी बोमनजी हैं।
बोमनजी नये खुले बॉम्बे स्कूल के पहले चित्रकार थे,
अजन्ताभित्तिचित्रों की नक़ल परियोजना में काम करा
ये अपने परिवार के सदस्यों को मॉडल करते थे,
चित्र में तोते को दाना देती उनकी पत्नी जिलूबाई हैं,
संभवतः मॉं से लिपटा हुआ बच्चा उनकी बेटी है,
यह उत्कृष्ट कृति है , महिला के चेहरे पर चमक है,
बोमन जी ने पारसी दैनिक जीवन चित्रित किया है
उनका जीवन का कार्यकाल 1851-1938 में था।
