शृंगार करती मनोरम
शृंगार करती मनोरम
सुंदर काया पर मन समाया,
शब्दों से सुर सजे जैसे सरगम।
हृदय पुष्प बन कर खिलती,
हर रोज़ शृंगार करती मनोरम।
कहानी उसकी सबकी जुबानी
सुंदरता सजी है उसकी चितवन।
मुखमंडल पर शोभित रंगरूप,
कर्णकुंडली सज रही है उत्तम।।
कोमल काया पर सतरंगी छटा,
हृदय तरंगित करे हो अनुपम।
सौंदर्य की प्रतिमा का शोभा बढाए,
बालिओं की झन-झन सुंदरतम।।
प्रेमी को आमंत्रित करती प्रेम से,
राग मल्हार संग प्रीत सजे है उत्तम।
बालियों की तरह टूटती प्रेम पंखुड़ी,
शांतता से मन मोह लेती, हो मधुरम।।
प्रसन्न वदनी हो सजती वो सदा,
करती है धड़कन को बहुत उच्छन।
पुष्पों से ढकी हुई कर्ण-धारिका से,
कंचन काया शृंगार करती मनोरम।।

