श्रीमद्भागवत -९ ;महर्षि व्यास का असंतोष
श्रीमद्भागवत -९ ;महर्षि व्यास का असंतोष
शौनक पूछे सूत जी से ये
शुकदेव जी ने सुनाई कथा जो
किस स्थान पर, और किस कारण
किस युग में कथा हुई वो।
किसने प्रेरणा दी व्यास को
इस संहिता का निर्माण करें वो
उनके पुत्र शुकदेव की कथा
निरंतर हरि में स्थिर रहते जो।
सूत जी कहें, जब शुकदेव जी
सन्यास के लिए वन को जाएं
व्यास जी भी उत्सुकता वश तब
उनके पीछे पीछे आएं।
स्नान कर रहीं कुछ स्त्रियां
शुकदेव जी नंगे चल रहे वहां
फिर भी उनको देख कर ऐसे
उन्होंने कोई वस्त्र धारण न किया।
परन्तु व्यास जी वस्त्र पहने हुए
उनके पीछे पीछे आ रहे
उन्हें देख लज्जा से उन्होंने
कपडे पहन लिए थे सारे।
स्त्रिओं से इसका कारण पूछे
व्यास जी को था आश्चर्य हुआ
वो कहें, आप की दृष्टि में अभी
स्त्री पुरुष का भेद बना हुआ।
पुत्र की है शुद्ध दृष्टि जो
स्त्री पुरुष में भेद करे न
उससे हमें कोई लज्जा नहीं है
आप इस में आश्चर्य करो ना।
शोनक कहें मुनि सूत जी से कि
शुकदेव जी हस्तिनापुर जब जाएं
कैसे परीक्षित से मिले वो
जो संवाद हुआ वो सुनाएं।
अभिमन्युनन्दन परीक्षित का तो
भगवान की भक्ति में लगा मन
उनकी सारी कथा कहें हमें
जन्म, कर्मों का कीजिये वर्णन।
सूत जी कहें, पराशर मुनि से
सत्यवती के गर्भ से जन्में
व्यास जी भूत भविष्य जानें
जन कल्याण करूं ,उनके मन में।
देख, समय के फेर से कैसे
लोग श्रद्धाहीन हो जाएं
बुद्धि ठीक से निर्णय न करे
आयु भी कम होती जाये।
समस्त आश्रमों और वर्णों का
कैसे हित हो वो सोचें तब
बांटा वेद को चार भाग में
ऋग, यजर, साम, और अथर्व।
इतिहास और पुराण जो हैं वो
पांचवां वेद हैं कहलाएं
सारे वेदों के सनातक
अलग अलग ऋषि बन जाएं।
अपने अपने शास्त्र को वो
भागों में फिर बांटते जाएं
उनके शिष्यों से फिर आगे
वेदों की बन गयीं कई शाखाएं।
लोगों के कल्याण की खातिर
व्यास जी ने महाभारत रच दिया
मन उनका अशांत फिर भी
उससे भी उनको संतोष ना हुआ।
अपूरणता का कारण ढूंढें
बहुत खिन्न वो हो रहे थे
उसी समय नारद वहां पहुंचे
वो उनको ये उपदेश दें।
बोले वो व्यास जी से कि
महाभारत तो बड़ी अद्भुत है
फिर भी शोक क्यों कर रहे
व्यास कहें संतुष्ट नहीं मैं।
इसका कारण मैं न जानूं
आप हैं ज्ञाता, मुझे समझाएं
साक्षात् ब्रह्मा जी के पुत्र
आप ही ये कारण बताएं।
अगाध ज्ञान है आप के पास में
तीनों लोकों में भ्रमण करें हैं
योग बल से सब जानते
भक्तजनों का कष्ट हरें हैं।
नारद कहें, भगवान के यश का
गान नहीं किया तुमने पूरा
जिससे हरि संतुष्ट नही हों
शास्त्र का वो ज्ञान अधूरा।
जैसा निरूपण किया है तुमने
पुरुषार्थ का और धर्म का
वैसा निरूपण नहीं किया है
श्री कृष्ण की महिमा का।
निर्मल ज्ञान ही वो साधन है
जिससे प्राप्त होती है मुक्ति
यदि हरि की भक्ति ना उसमें
उसकी उतनी शोभा न होती।
नारद जी कहें, हे व्यास जी
भगवान लीलाओं का स्मरण करें
कीर्ति बहुत पवित्र आपकी
लोग हित में उनका वर्णन करें।
जन्म मृत्यु से परे आप हैं
संसार से आपका कोई ना नाता
आप एक अवतार प्रभु के
करें आप कल्याण जगत का।