श्रीमद्भागवत -८७;आग्नीध्र चरित्र
श्रीमद्भागवत -८७;आग्नीध्र चरित्र
इस प्रकार तपस्या में
संलग्न हो जाने पर पिता के
जम्बूद्वीप का पालन करने लगे
राजा आग्नीध्र, उनकी आज्ञा से।
पुत्र प्राप्ति के लिए वो
एक बार मंदराचल थे गए
तपस्या में तत्पर होकर वहां
ब्रह्मा जी की आराधना करने लगे।
उनकी अभिलाषा जानी ब्रह्मा ने
एक अप्सरा को भेज दिया
उनकी सभा की गायिका थी वो
पूर्वचिति नाम था उसका।
आग्नीध्र के आश्रम के पास जाकर रही
एक उपवन में, जो था रमणीय अति
जब वो उसमें थी विचरती
नुपुरों की झंकार थी उठती।
इनकी मनोहर ध्वनि को सुनकर
आग्नीध्र ने नेत्र खोले थे
अप्सरा को देखा तो ह्रदय में
कामदेव प्रवेश कर गए।
उसको प्रसन्न करने के लिए
इस प्रकार कहने लगे वो
इस वन में तुम क्या कर रही
कन्या, तुम बहुत सुंदर हो।
क्या तुम्हे ब्रह्मा जी ने भेजा
मुझे तुम कहीं भी ले चलो
ऐसे जब अप्सरा से कहा
उनसे तब प्रसन्न हुई वो।
आकर्षित हो राजा से वो
उनके साथ जम्बूद्वीप में रही
और कई हजार वर्ष तक
राजा संग भोग भोगती रही।
उसके गर्भ से नौ पुत्र हुए
नाभि, किम्पुरुष, हरिवर्ष, इलावृत ये
रम्पक, हिरण्मय, कुरु,भद्राशव
और केतुमाल नाम थे उनके।
नौ वर्ष में नौ पुत्र पैदा कर
ब्रह्मा जी के पास चली गयी अप्सरा
जम्बूद्वीप के नौ भाग किये राजा ने
एक एक पुत्र को सौंप दिया।
महाराज आग्नीध्र दिन भर
भोगों को भोगते रहते थे इसलिए
उसी लोक को प्राप्त किया जहाँ
मस्त रहें पितृगण भोगों में।
पिता जब परलोक सिधार गए
नाभि अदि तब नौ भाइयों ने
विवाह किया था उन सबने
मेरु की नौ कन्याओं से।
मेरुदेवी, प्रतिरूपा, उग्रदंष्ट्री
लता , रम्या, शयामा, नारी ये
भद्रा, देवविती भी, नौ ये
नाम उन कन्याओं के थे।