श्रीमद्भागवत -७९; राजा पृथु की तपस्या और परलोक गमन
श्रीमद्भागवत -७९; राजा पृथु की तपस्या और परलोक गमन
धर्मों का खूब पालन कर
पृथु ने धरती का पालन किया
अवस्था ढल जाने के कारण फिर
पृथ्वी का भार पुत्रों को दे दिया।
अंतिम पुरुषार्थ मोक्ष के लिए
तपोवन को थे वो चल दिए
गृहस्थ आश्रम छोड़ चले वो
अपनी पत्नी अर्चि को साथ लिए।
वहांपर नियमानुसार हरि की
तपस्या में लगे हुए वो
कुछ दिन कंदमूल खाकर फिर
वायु से ही निर्वाह करें वो।
मुनिवृति से वहां रहते थे
ब्रह्माश्रम का पालन करके
चित उनका शुद्ध हो गया
अधीन कर लिया प्राणों को अपने।
भगवान सनत्कुमार ने उन्हें जिस
अध्यात्मयोग की शिक्षा दी थी
उसी के अनुसार चलकर ही
आराधना करें वो श्री हरि की।
परब्रह्म परमात्मा में तब
अनन्य भक्ति हो गयी उनकी
निरंतर भगवत्चिंतन से उनको
वैराग्य, ज्ञान की प्राप्ति हुई।
अहंकार सब नष्ट हो गया
अन्तकाल जब उपस्थित हुआ
चित को परमात्मा में स्थित कर
उन्होंने शरीर को त्याग दिया।
पृथु की पत्नी अर्चि ने भी
नियमादि का पालन करते हुए
पहले पति की सेवा की थी फिर
शरीर त्यागा था साथ पति के|
मन्दाचल के शिखर पर वहां
देवियों ने उनकी स्तुति की
कहें, देवी ये उच्चलोकों में
अपने पति के साथ जा रही।
मैत्रेय जी कहें कि हे विदुर जी
देवांगनाएँ जब स्तुति कर रहीं
पृथु जी जिस परमधाम को गए
अर्चि भी उनके साथ थी गयीं।
