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Ajay Singla

Classics

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Ajay Singla

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श्रीमद्भागवत -५१;अष्टांग्योग की विधि

श्रीमद्भागवत -५१;अष्टांग्योग की विधि

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कपिल जी कहें, हे माता अब 

लक्ष्य बताऊँ तुम्हें सबीज योग का 

जिसके द्वारा चित शुद्ध हो जाए 

परमात्मा में प्रवृत हो जाता।


स्वधर्म का पालन करना 

शास्त्र विरुद्ध आचरण का त्याग करे 

प्रारब्ध अनुसार जो भी मिल जाए 

उसे ले कर संतुष्ट वो रहे।


ज्ञानीयों के चरणों की पूजा 

दूर रहे विषय वासनाओं से 

संसार बंधन से जो छुड़ाते 

प्रेम करे उन सब धर्मों से।


पवित्र और परिमित भोजन करे 

निरंतर एकांत स्थान में रहे 

ना सताए वो किसी जीव को 

मन से भी ना और ना शरीर से।


सत्य बोलना, चोरी ना करना 

अनावश्यक वस्तु संग्रह ना करे 

ब्रह्मचर्य का पालन करे वो 

पवित्र रहे बाहर भीतर से।


शास्त्रों का अध्यन करना और 

भगवान की पूजा भी करना 

वाणी का संयम करना और 

अभ्यास करना उत्तम आसनों का।


प्राणायाम द्वारा श्वास को जीतना 

इंद्रियों को वश में करना 

भगवान की लीलाओं का चिंतन 

प्रभु को अपने चित में धरना।


व्रतादि से प्राणों को जीतकर 

बुद्धि द्वारा चित को एकाग्र करे 

पवित्र जगह पर आसन बिछाए 

परमात्मा का फिर वो ध्यान करे।


जो प्राणवायु को जीत ले 

मन बहुत शीघ्र ही शुद्ध हो 

भगवान की मूर्ति का ध्यान करे 

मन में देखे संपूरण अंगों को।


फिर हर एक अंग को अलग से 

चित में अपने वो ले आए 

फिर चरणकमलों का ध्यान करे 

जहां से श्रेष्ठ गंगा जी आएँ।


सुदर्शन चक्र, शंख का चिंतन करे 

कोमोदकि गदा, कोस्तुभमनी का 

इस प्रकार ध्यान लगाने से 

श्री हरि से प्रेम हो जाता।


हृदय भक्ति से द्रवित हो जाता 

शरीर रोमांचित होने लगता है 

प्रेमअश्रुओं की धारा से 

शरीर को वो फिर नहलाता है।


मन शांत ब्रह्मकार हो जाता 

जीव देखे परमात्मा को ही 

शरीर, इंद्रियों के सहित, जीवित ही 

प्राप्ति होती उसे परमात्मा तत्व की।


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