STORYMIRROR

Ajay Singla

Classics

4  

Ajay Singla

Classics

श्रीमद्भागवत -१००; भरत जी के वंश का वर्णन

श्रीमद्भागवत -१००; भरत जी के वंश का वर्णन

2 mins
220


शुकदेव जी कहें, हे राजन

भरत जी का पुत्र सुमति था

उसने ऋषभदेव जी के

मार्ग का अनुसरण किया था।


उसकी पत्नी वृद्ध सेना से

देवताजित पुत्र हुआ था

देवताजित के असुरी के गर्भ से

देवद्युमन ने जन्म लिया था।


देवद्युमन के धेनुमति से

उत्पन्न हुआ था परमेष्ठी

उसके और पत्नी सुवर्चला के

पुत्र का नाम था प्रतीह।


प्रतीह ने अन्यपुरुषों को

उपदेश दिया आत्मविद्या का

साक्षात अनुभव किया फिर उन्होंने 

शुद्ध चित हो नारायण का।


प्रतीह के तीन पुत्र हुए

प्रतिहोता, प्रस्तोता ,उदगाता थे

उनमे से एक पुत्र

प्रतिहोता का विवाह हुआ स्तुति से।


उन के फिर दो पुत्र हुए

ज और भूमा उनका नाम था

भूमा की पत्नी ऋषिकुल्या से

उदगीथ नमक पुत्र हुआ था।


उसके देवकुल्य से प्रस्ताव

प्रस्ताव के नियुत्सा से विभु पुत्र हुआ

विभु के रति से पृथुषेय और

उसके आकृति से नक्त हुआ।


नक्त के द्रुति के गर्भ से

जन्म हुआ राजर्षिप्रवर गय का

उन्होंने सत्वगुण को स्वीकार किया

माने जाते वो अंश भगवान का।


सत्पुरुषों में गणना हो इनकी

प्रजा का पालन पोषण करके 

निष्काम भाव से धर्म आचरण करें

यज्ञों का अनुष्ठान वो करके।


इससे उनके सभी कर्म जो

समर्पित किये थे श्री हरि को

परमार्थरूप बन गए सभी

भक्तियोग की प्राप्ति हुई उनको।


भगवत्चिंतन से चित शुद्ध किया

देहादि अभिमान ख़त्म किया

ब्रह्मरूप का अनुभव करके फिर

निरभिमान पृथ्वी पालन किया।


परम साध्वी दक्ष कन्याएं

श्रद्धा, मैत्री और दया आदि ने

गंगादि नदिओं सहित था उनका

अभिषेक किया बड़ी प्रसन्नता से।


उनकी इच्छा न होने पर भी

वसुंधरा ने गौ की तरह ही

उनके गुणों पर रीझकर

अन्न धनादि की वर्षा की थी।


कामना न होने पर भी

वेदोक्त कर्मों ने उनको

सब प्रकार के भोग दिए थे

राजाओं ने भेटें दीं उनको।


ब्राह्मणों ने दक्षिणादि से संतुष्ट हो 

धर्मफल का अंश दिया अपने 

एक बार उनके यज्ञ में इंद्र 

उन्मत्त हुए थे सोमपान से।


उनके समर्पित किये यज्ञ फल को 

ग्रहण किया था यज्ञ पुरुष ने 

साक्षात् वो प्रकट हुए थे 

तृप्त हुए वो उनके यज्ञ से।


महाराज गय के गयन्ती से 

तीन पुत्र उत्पन्न हुए थे 

चित्ररथ, सुगति और अवरोधन 

उन तीनों के नाम पड़े थे।


चित्रश्य की पत्नी उर्णा से 

पुत्र हुआ था सम्राट नाम का 

सम्राट से मरीचि उत्पन्न हुए 

उनसे बिन्दुमती से बिन्दुमान हुआ था।


उनसे सरध से मधु हुआ 

मधु के सुमना से वीरव्रत 

वीरव्रत के भोजा से फिर हुए 

मंथु और प्रमंथु दो पुत्र।


उनमें से मंथू की भार्या 

सत्या से भोक्त उत्पन्न हुआ 

भोक्त से दूषणा के गर्भ से 

त्वष्टा नाम का पुत्र हुआ।


त्वष्टा के विरोचना से विरज 

विरज के विषूचि से सौ पुत्र हुए 

शतजित आदि वो पुत्र 

एक कन्या हुई थी उनके।


राजा विरज के बारे में कहते 

कि जैसे विष्णु हैं देवताओं में 

इस प्रकार प्रियव्रत के वंश को 

विभूषित किया था राजा विरज ने।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics