श्रेष्ठ कौन?
श्रेष्ठ कौन?
सदियों से बुद्धि व भाग्य में यह प्रतिद्वंद है चला ,
कि दोनों में से आखिर कौन है निम्न कौन है बड़ा I
बुद्धि चिरंजीवी व्यक्ति का अभिमान है तो भाग्य की कृपा से मूर्ख भी बलवान है ,
बुद्धि माथे का तेज है ,तो भाग्य ने बदला हर निर्धन लाचार का वेश है I
बुद्धि सरस्वती की कीर्ति है ,तो भाग्य के सौजन्य से बन गया बिगड़ा काम,
कैसे उल्लेख किया जाए , दोनों में से कौन है श्रेष्ठ है और कौन है आम I
बुद्धि संसार पर विजय पाने का मन्त्र है ,तो भाग्य बिगड़ी बनाने का एकमात्र यन्त्र है ,
बुद्धि व भाग्य में फिर ना जाने कैसी ये जंग है?
एक ने बदली सृष्टि तो दूसरी उसकी रचनाकार है ,
एक से है अस्तित्व तो अन्य ने किया संसार का कल्याण है I
दोनों में फिर कैसी है होड़ , कैसी ये स्पर्धा ,
दोनों हैं एक दूसरे के साथी , अधूरे हैं दोनों अन्यथा I
जैसे दीपक में ज्योति मैं और सीप में मोती , उसी तरह है इनका एक दुसरे से अभिन्न नाता ,
ना बुद्धि से मुँह मोड़ कर, ना भाग्य से पृथक हो कर मनुष्य संतुष्ट रह पाता I
बुद्धि व भाग्य साथ चलें तो जीवन का हो जाता है उद्धार ,
एक दूजे के बिना दोनों का ना तो कोई वजूद ना ही कोई पहचान .