शराबी
शराबी
तूने क्या सोचा है कभी
ऐ शराबी
जितना तुम कमाओगे
अगर अधिकतर
शराब पर लुटाओगे
अपना और बीवी बच्चों का पेट कैसे भर पाओगे ।
तूने क्या सोचा है कभी
ऐ शराबी
ईश्वर प्रदत खूबसूरत शरीर से क्यों करते हो खिलवाड़
भट्टी में इसे क्यों जलाते हो
कैंसर को निमंत्रण क्यों देते हो।
तूने क्या सोचा है कभी
समाज में तुम्हारी क्या है स्थिति
तुम शराबी ही नहीं
बदचलन भी जाने जाते हो
अपराध जगत से भी
जोड़े जाते हो।
तुम करते हो सोमरस की बात
ऋषि मुनियों की बात
राजाओं महाराजाओं की बात
पश्चिमी सभ्यता की बात आधुनिकता की बात।
यह सच है कुछ भी बुरा नहीं होता बुरी होती है
किसी भी चीज़ की लत
बुरी होती है अपनी सीमा की
न होना पहचान।
तुम कहते हो तुम गम भुलाने की ख़ातिर पीते हो
कौन है जिसकी चारपाई के नीचे
कांटे और सिर पर नहीं है तलवार जिसकी चादर उठाओ
दुखों का मारा पायो
फिर तुम ही क्यों इस ज़हर को
गले के नीचे उतारा करते हो
तूने क्या सोचा है कभी
ऐ शराबी।
