शक्ति का अभिप्राय
शक्ति का अभिप्राय
एक और एक ग्यारह है शक्ति का अभिप्राय
सूत्र एकता का सिखलाता करें शक्ति संचार,
लक्ष्य बड़ा कितना भी हो मन में हो विश्वास
दृढ़ संकल्पित होकर कर्म हो साहस मिले अपार।
एक-एक मोती संग पिरोकर बन जाती है माला
गर जो टूटे बिखरे मोती बिखरे सारी माला,
गर जो हो निस्वार्थ करो उपकार मनुज जीवन में
त्याग समर्पण भाव रहे तो सुख मय हो संसार।
इंसान है इंसान के काम ना आए जो
कैसी है मानवता ना दिखलाइए जो,
सत्य अहिंसा परमो धर्म है वेद कहे
काम आए जो एक दूजे को यही है सच्चा प्यार।
स्नेह भाव वात्सल्य और करुणा उर में रहे अपार
सुखमय जीवन सन्मति के संग वेद भी करे बखान,
सन्मार्ग सत्कर्म हो अपना और सेवा उपकार
दान धर्म तप त्याग शिवम् जीवन का आधार।