शह और मात दोनों मुकाम हो जाये
शह और मात दोनों मुकाम हो जाये
वह क्यों नहीं हुआ तेरी जिंदगी का तलबदार,
बहुतों का तबीब बना न कभी किया ऐतवार।
दिल ने इस जिंदगी को जीना सिखाया है,
फिर क्यों जुबां पर रुखसत का नाम आया है।
हो सके तो समझाने की कोशिश में गुमराह न कर,
हो सके तो समझ और हालात पर ऐतबार न कर॥
मोहब्बत के पन्नों में गालिब वही है,
नगमा जिसका गम-ए-खाक है,
मोहब्बत के सहरों में अफसाना वही है,
सजदों में जिसका दिल-ए-बर्बाद है।।
तुम्हें भुला दें ऐसी कोई शह बन जाये,
प्यार की जंग में ऐसी कौन सी चाल दूँ,
शह और मात दोनो ही मुकाम हो जाये।
जिन्दगी में तमन्नाओं को खाक होते देखा है,
ऐतबार नहीं इश्क एक खूबसूरत धोखा है।।
पहले मिली नजर से नजर,
फिर यूँ ही प्यार हो गया।
ऐसे मिले दो दिल इकरार में,कि
सारा जहाँ निशार हो गया।।
मोहब्बत की कुछ इस तरहा शुरूआत हुई,
कि एक जिस्म दो जान बने,
फिर जुदा हो गये धीरे-धीरे तकरार में,कि
खुशी की चाहत में गमों की ऐसी शुरुआत हुई ।