शेष
शेष
सब-कुछ
बीत जाने के बाद
बचा रहेगा प्रेम,
केलि के बाद
शैया में पड़ गई सलवटों-सा।
मृत्यु के बाद
द्रव्य-स्मरण-सा,
अश्वारोहियों से
रोंदे जाने के बाद
हरियाली ओढ़े
दुबकी पड़ी धरती-सा।
गर्मियों में सूख गए
झरने की चट्टानों के बीच
जड़ों में धँसी नमी-सा।
बचा रहेगा
अंत में भी
प्रेम !