शब्द
शब्द


शब्द रूठे अल्फाज खोये;
अब यही असमंजस है कि कुछ नया कहां से आए;
लिखते - लिखते कहा कलम ने कहां गया वह हूर ;
जब चंद लफ्जों में ही भर जाता था उपन्यास सा नूर;
अब तो हर पल यही ख्याल आए;
शब्दों में कैसे भावनाओं को समेटा जाए;
कुछ ज्यादा न सही ,गागर में ही सागर भरा जाए;
चंद पंक्तियों की खूबसूरती से ही गुलशन को संजोया जाए ।