शब्द
शब्द
शब्द ही शब्दों को करते हैं निःशब्द
करते हैं वार यान पार कर जाते हैं हर हद
मगर किसने दिया इनको इतना इख्तियार
कि बिना कुछ कहे और सुने करते है यह वार
शब्दों के फेर में मिट जाती हैं हस्तियाँ
मिट जाते हैं अनगिनत शहर और बस्तियाँ
शब्द ही नहीं मिलते जो कह सके दिल की दास्तान
बस सिमट कर रहे जाते हैं हर वह मस्तान
अलग रखते हैं जीने की सोच और ख्वाहिश अनजान
शब्द ही ढाते हैं इन परिंदों की यह अनजानी उड़ान
सोचने पर मजबूर हो जाते हैं आप और हम
किस उलझन और सोच में यह शख्स है गुम
कहाँ से लाया था यह नए सपने और नए ख्वाब
इन्हीं शब्दों में अक्सर उलझे रहते हैं ढूँढते हुए जवाब
जो रोक दे इस की हर कोशिश और आज़माइश को
क्यों नहीं साथ हो हम हौसला दें इस नवीन को
शब्द ही तो हैं शब्दों का है यह रंग
जो ख़त्म कर देता है उसे अपने ही संग
हल किसी के पास नहीं देने के लिए है सिर्फ सबक
हम जानते हैं हल मगर कहने से हैं झिझक
क्योंकि बयान करने पर मालूम है क्या सोचेंगे इंसान
या भरोसे लायक मिला ही नहीं ऐसा इंसान
जो उत्तर घूम रह है वह शायद कोई समझे नहीं
मगर जानते हैं इस पड़ाव का हल है वह सबसे सही
फिर उन्हीं शब्दों के फेर ने लगा दिए हैं पहरे
जाने कब छटेंगे यह शब्दों के कोहरे गहरे
क्या कह पाएंगे वह शब्द किसी को इख़्तियार से
अभी तो बहुत दूर हैं ऐसे शख्स और माहौल से
क़ैद रहेंगे इन्हीं शब्दों के इस चक्रव्यूह में
इंतज़ार रहेगा इस उम्र क़ैद कि रिहाई से हमें

