शब्द जाल
शब्द जाल
तुमने स्वनिर्मित शब्द जाल के मोहपाश में
मेरी स्व -केंद्रित गरिमा को भरमाया था
तुमने अपने अश्रुओं से भीगकर
मेरी एकाग्रता को दुलराया था।
तुममे न जाने ऐसा क्या है
कि तुमसे बात करके ही
मुझे अपनी पूर्णता का एहसास होता है
मेरे इस एहसास को अपने
परिहास का आभूषण दे दो।
मैं उससे जन्म - जन्मांतर तक
अपने श्रँगार को आलोकित करूंगीं।
तुम्हारी इस अभिव्यक्ति को
मैं अपनी उपलब्धि मान बैठा था।
तुम्हारी मन्नौवल मेरी धरोहर बन गई।
कि अगले ही पल मैंने स्वयं को
मकड़ी के एक जाल में जकड़े पाया।
तभी मेरी अंतर्निहित गरिमा फिर से
मेरे पास आ खड़ी हुई
बेबस मत होओ
जालों में कोई दम नहीं होता
साफ़ करने से साफ़ हो जाना
उनकी नियती है।
खड़े होकर तो देखो
मुक्ति तुम्हारे द्वार पर खड़ी है।