छलक रही है अधरों से जो
छलक रही है अधरों से जो
छलक रही है अधरों से जो
उस मदिरा को पी जाने दो।
द्वार खुले हैं इन नयनों के
इनमें ही अब खो जाने दो।
देर हुई है आने में तुम तक
अब दूर हमें तुम मत जाने दो।
वक्ष हैं उथले, भरा है सागर
सागर में तुम, उतर जाने दो।
विश्राम का आँचल शुष्क पड़ा है,
आँचल को नम, अब हो जाने दो।
थका - थका सा मार्ग है बीहड़ ,
उपवन सा उसको खिल जाने दो।
धरती प्यासी, भरे हैं बदरा,
प्यास तुम धरती की अब बुझ जाने दो।
चाँद अधूरा, अधबीच खड़ा है
चांद को पूरा हो जाने दो।
विरह की अग्नि प्रचंड हुई है,
झरना बन तुम, उसको थम जाने दो।
झुके - झुके हैं, नयन तुम्हारे,
इन नयनों का काजल बन जाने दो ।
रुकी हुई है अरमानों की आंधी,
अरमानों को तुम मुखर हो जाने दो।
पायल सूनी, बिछुआ भी गायब,
पायल की झांझर बन जाने दो।
छलक रही है अधरों से जो,
उस मदिरा को पी जाने दो।

