शायद एक सपना
शायद एक सपना


हर गली हर बज़्म से गुज़र कर देखा
एक अशांत कोहराम से लबरेज़ और
चीखता हुआ माहौल का साम्राज्य
पथराए पड़ा है !
कहीं सियासी आपाधापी, तो कहीं
वहशियत का राज,
कहीं महँगाई की हाहाकार तो कहीं
कौमी रमखाण !
कहीं पैसों की खनखन का शोर
तो कहीं भूखे पेट की
भड़भड़ाती ज्वाला !
कहने भर को सब सुखी है भीतर
सबके जलता ज्वालामुखी !
चलो हाथों में हाथ थामे एक जंजीर
बनाए, बादलों के पार आसमान में
उगते सूरज सा दीप जलाए !
दिल से वैमनस्य का ताप मिटाएं
मानवता का अलख जगाए,
तेरा मेरा कुछ ना रहे अपनेपन की
ज्योत जलाए !
पेड़ो की टहनी पर कुल्हड़ लगाकर
अमन के मीठे घी की लौ जलाए,
शायद कोई सुकून सबर गुलाबी
भोर खिल जाए, हर ज़िंदगी को
रौशन करती।।