शांत हूँ मैं, अनभिज्ञ नहीं
शांत हूँ मैं, अनभिज्ञ नहीं
शांत हूँ मैं, अनभिज्ञ नहीं, पलट कर जवाब देना मेरे संस्कार नहीं
खामोश रह जाती हूँ, क्योंकि किसी का बुरा करना चाहती नहीं
प्रेम, धर्म निभाती हूँ मैं अपना, ऐसी भी कोई मेरी मजबूरी नहीं
करते हो जो दबाव, है मुझ में सहनशक्ति, मेरी कोई कमजोरी नहीं
यूँ तो आवाज़ तुझसे बुलंद कर सकती हूँ, मगर वो मेरी फितरत नहीं
पछताओगे किए पर एक दिन, क्योंकि लिखा जा रहा है हिसाब कहीं।