शाम के साहिलों पर.............
शाम के साहिलों पर.............
शाम के साहिलों पर ज़िंदगी के अफ़साने हैं
गुज़रे जमाने के कुछ किस्से बड़े सुहाने हैं
कुछ शैतानिया, कुछ नादानियाँ भरी पड़ी हैं
कुछ नफरतों के भी अजीब से फ़साने हैं।
महकते थे कभी ख़ुशबू की तरह तन्हाईयों में
वो अपनी हंसी के फूल थोड़े तो अनजाने हैं
साथ पा के अपनों का सारा जहाँ रोशन था
आज वहीं पे थोडे उजड़े रिश्तों के आशियाने है
महफ़िलों में शामिल सारे अपनें हसी के ठहाके
शाम के साहिलों पर ना जाने क्यो बेगाने हैं।