STORYMIRROR

Nitu Mathur

Classics Inspirational

4  

Nitu Mathur

Classics Inspirational

सच्ची प्रतिज्ञा

सच्ची प्रतिज्ञा

4 mins
284

दिन भर की थकन बिना बयाँ किए 

समंदर से अलविदा कहता है सूरज 

तपन धीमे सहेजे हुए एक वादा लिए

लालिमा समेटे हुए फ़िर आता है सूरज 


वहीं चाँद को ना चाह है किसी की 

ना किसी से कोई उम्मीद आरज़ू है 

बस परबतों का हमज़ोली  बनकर 

नई सपनों वाली रैन की ज़ुस्तजू है 


अपने गीतों से क्यूँ  ना मैं लुभाऊँ इन्हें 

सागर को सूरज से, चाँद को परबत से 

प्रीत अनुराग की धुन नूपुर संग ताल पर 

थिरक थिरक इठलाना सिखाऊँ इन्हें 


या सीखूँ इनसे सच्चा वादा निभाना 

परबत से सीखूँ  शिखर तक का मार्ग 

सूरज से तेज सीखूँ चाँद से शीतलता 

सागर से गहराई सीखूँ गगन से अनंतता,


धरा गगन के मध्य रंगों का मिश्रण 

मोहक सुगंध बिखेरती बहती पवन 

अद्भुत अलौकिक ऋतु मनोहर छटा 

नव सृजन  सृष्टि का हर दुख दूर हटा


हर साँझ नए सवेरे का वचन देती है 

हर भोर  उज्ज्वल दिन का सत्कार 

एक दूजे से सच्ची प्रतिज्ञा निभाते हुए 

ये सुंदर सृष्टि निरंतर सुखद चलती है। 



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics