सच्चा प्यार
सच्चा प्यार
एक महान लेखक ने कहा है
किसी भी इंसान का
पहला प्यार ही
सच्चा प्यार होता है
बाद में किया हुआ प्यार तो
अपने को भूलने का
भरमाने का प्रयास मात्र है
हो सकता है
ये उनके अहसास है
उनके विचार है
कदर करते हैं हम इसे
पर हमारा अहसास ये है कि
प्यार तो प्यार है
उसमें पहला,दूसरा और आखिर
फिर सच्चा, झूठा
ऐसे शब्द जोड़ना नहीं चाहिए
बिलकुल नहीं चाहिए
इसे और किसका नहीं
प्यार का ही अपमान होता है
मेरे यार ! प्यार तो सिर्फ प्यार होता है
और वो हमेशा सच्चा होता है
गर वह सच्चा नहीं
तो समझ लेना मेरे यार !
वो प्यार ही नहीं
प्यार कभी था ही नहीं
वो तो दूसरा कुछ है ..!
और उस संपर्क केलिए दूसरे कोई
शब्द इस्तेमाल होना चाहिए
पर प्यार नहीं ..
प्यार तो वो मलयानिल होता है
जिसका स्पर्श मात्र से
नीम बन जाता है चंदन
फिर नीम पेड़ का
अतीत के साथ कोई
संबंध नहीं रहता,क्योंकि
फिर वह चंदन पेड़
और नीम नहीं हो सकता
फिर एक बात,ऐसे प्यार में
बिरह और मिलन का अहसास
एक जैसा होता है
यानी बिरह में भी कोई
पा सकता है मिलन की सुख
और मिलन में बिरहा का अहसास
फिर वो कभी अकेला नहीं होता
ऐसे ही प्यार हमारे जीवन में
जब भी होता है
वो हमारे जीवन को
सृजनशील और धन्य करता है
वो हमे कभी स्वार्थी,खुदगर्ज
करता नहीं,नीचे गिराता ही नहीं
हमारा चेतना को उच्चतर और
महत्तर करता है
हमें त्याग करना जो सिखाता है
खुद के साथ दूसरे के वारे में
सोचने को शिखाता है और
हर पल प्रेरित करता है
जहां तक हमारे नजर जाए
उस दूर... दूर... दूर दिगंत तक
आसमान तक भी
सब को प्यार करने को ...
सबको अपना मानकर गले मिलने को ..!