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Saurabh Kumar Srivastava

Drama

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Saurabh Kumar Srivastava

Drama

सच

सच

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टूटा टपरा, टूटा छप्पर

और उस पर बरसातें सच

उसने कैसे काटी होंगी,

लम्बी-लम्बी रातेँ सच


लफ्जों की दुनियादारी में,

आँखों की सच्चाई क्या

मेरे सच्चे मोती झूठे,

उसकी झूठी बातें सच


कच्चे रिश्ते, बासी चाहत,

और अधूरा अपनापन

मेरे हिस्से में आई हैँ

ऐसी भी सौगातें सच


जाने क्यों मेरी नींदों के

हाथ नहीं पीले होते

पलकों से लौटी हैं

कितने सपनों की बारातें सच


धोखा खूब दिया है खुद को

झूठे मूठे किस्सों से

याद मगर जब करने बैठे

याद आयीं हैं बातें सच !


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