सबको मान्य।
सबको मान्य।
हम जबसे पैदा होते,
मां कहते,
तोतली बोलते,
हिंदी को ही खोजते,
फिर ज़बान साफ होती,
हिंदी मधुर कंठस्थ लगती,
कुछ भी पुकारने में,
उचित लगती।
घर से ही,
इसका सामान्य ज्ञान पाते,
फिर विधीवध स्कूल जाते,
और हिंदी की,
वर्णमाला सीखते,
ये है बहुत वैज्ञानिक,
तर्क पर बैठती ठीक,
जैसा लिखा,
वैसा पढ़ो,
कोई भेदभाव नहीं किसी से,
सबको समझे,
एक सम्मान,
तभी तो हिंदी कहलाए,
आम जनमानस का वार्तालाप।
संस्कृत से जन्मी,
इसलिए उसकी है बेटी,
सब भाषाओं को,
सखी समझ,
साथ ले चलती,
चाहे वो हो,
अंग्रेजी, फारसी, उर्दू, बंगला इत्यादि।
इसलिए ये है,
बहुत बड़ा संगम,
यहां सब भाषाएं,
हो जाती इकट्ठी,
एक प्रवाह में चलती।
चाहे हो पूर्व,
चाहे हो पश्चिम,
चाहे उत्तर,
चाहे हो दक्षिण,
दुनिया में भाषा जानने वालों में,
हिंदी पाती तीसरा स्थान,
तकरीबन दुनिया के,
हर विश्व विद्यालय में,
पढ़ाई जाती,
आज ये बन गईं,
व्यापार, अर्थशास्त्र और टैक्नोलॉजी की भाषा,
कोई नहीं ऐसा विषय,
जो इससे रहे अछूता,
बन गई है,
हिंदी जाने वालों,
और न जानने वालों में सेतु,
अगर किसी को कोई भाषा,
समझ न आए,
तो हिंदी कर सकता ट्राय।
कोई न शर्म करो,
कोई न तकल्लुफ लगे,
जहां भी जाओ,
हिंदी ही अपनाओ,
हिंदी में खाओ,
हिंदी में सांस लो,
हिंदी ही पहनो,
हिंदी ही शिष्टाचार हो,
हिंदी ही नियमावली हो,
हिंदी ही आदर सत्कार हो,
हिंदी ही आना जाना हो,
हिंदी में ही भाषण हो,
हिंदी में ही गाना बजाना हो,
हिंदी ही नाटक हो,
हिंदी ही हमारा रोम रोम हो,
हिंदी ही पढ़ाने का तरीका हो,
हिंदी ही हमारा दीन धर्म हो।
आज हिंदी ही,
सोशल मीडिया पर राज करती,
सबसे अधिक गूगल पर,
उपयोग की जाती,
संयुक्त राष्ट्र में बोली जाती,
परंतु अभी है,
केवल राज भाषा।
जब सबको सखियों सी,
साथ ले चलती,
गंगा सी है पवित्र,
तो क्यों न,
इसको बना दें,
राष्ट्र भाषा,
जिससे इसे भी मिल जाए,
बाकी भाषाओं सी प्रतिष्ठा।
