सब पर हो मंगल की वर्षा
सब पर हो मंगल की वर्षा
आशा विश्वास भरा जिसमे
कर्मठ अति श्रमी कुशल जो है।
उन्नति उसके चूमती चरण
जो मृदुल सदाचारी भी है।
परदारा माता के समान
परधन पर जिसकी नजर नहींं।
अपने सा सबको जो माने
उसको कोई भी गैर नहीं।
मेले त्योहार मनाते हम
पर मर्म न उसका जान सके।
कहते सबको अपना लेकिन
मन से अपना ना मान सके।
हर धर्म जाति परिवार आज
सोचता सिर्फ अपने हित की।
परहित जब तक न विचारेगे
पूर्णता न होवे जीवन की।
अस्तेय अहिंसा ब्रम्हचर्य
सत् बचन अपरिग्रह का पालन।
जब धारेगे सब मिल ये व्रत
बसुधा पर होगा अनुशासन।
सम्पन्न सुखी हो जीव सकल
भय और बैर का भाव न हो।
हो सब पर मंगल की वर्षा
जग में दुख दैन्य दुराव न हो।