सब कुछ अधूरा सा-लगता है
सब कुछ अधूरा सा-लगता है
तन में मन में और जीवन में
मैंने तुमको बसाने की ठानी थी,
पर तुम तो निर्दयी निकली
दे गई जीवन में दुःख ही दुःख।
छोड़ गई सिसक सिसक रोने को
तू ही बता कैसे सहूंगा तेरे चले
जाना का गम. तू ही बता
कैसे भूल जाऊं तेरी मुस्कान को।
सब कुछ भूलना
नामुमकिन-सा लगता है
हाँ जीवन जी तो रहा हूँ
पर सब कुछ अधूरा-सा लगता है।
खुलकर मुस्कुराए कई वर्ष हुए
दिन और महीने गम में बीत रहे
आँखों के आंसू कैसे छुपाऊँ
अंतस की पीड़ा किसे बताऊँ।
काश ! तुम तो मेरी
वेदना समझी होती
आज यूं ही मुझे अकेला नहीं
छोड़ के गई होती।
जो तू न जाती मेरे जीवन से
मैं भी मन भर मुस्कुराता
जीवन जी भर जीता
हाँ अब जीवन जी तो रहा हूँ
पर सब कुछ अधूरा-सा लगता है।