सावन मधुमासी
सावन मधुमासी
सावन मधुमासी है, प्रेम राग का साथी है।
भूले बिछड़े यादों का सावन ही तो संगम है,।
कहाँ गया वो बचपन, जब राग-द्वेष भी हारा था।
कहाँ है वो झूला जिस पर कभी मैं झूली थी।
सखियों संग हाथों में रची जो मेरी मेंहदी थी।
माँ संग बनी पूड़ी - कचौड़ी, भाभी संग हँसी ठिठोली थी।
कहाँ गये वो दिन मैं चाची लड्डू छीनी थी।
नानी को वो बुलवाना, मामा का घर आ जाना।
प्रेम बरसता नेह आँखों में, होठों पर खुशियाँ रखी थी।
कहाँ गये सावन गीत, जिनमें हिल-मिल बतियाँ थी।
रिमझिम -रिमझिम बरसा और कारे-कारे बदरा थे।
भीगों के तन-मन बरसा में हर -घर प्रेम को बाँटा था।
कहाँ गयी वो बूँदा-बांदी जिनको हमने निहारा था।
