STORYMIRROR

Keyurika gangwar

Abstract Classics Inspirational

4  

Keyurika gangwar

Abstract Classics Inspirational

नेत्र सजल से अर रही निवेदन

नेत्र सजल से अर रही निवेदन

4 mins
3

नेत्र सजल से कर रही निवेदन ….
कोर नयन की भींग रही, गिरिधर को पूज रही।
 कब आओगे सखा प्रिय, परीक्षा अब आन पड़ी।
 ऋषि पधारे अँगना मेरे, सहस्त्र उनके शिष्य न्यारे।
 कैसे करूँ मैं भोजन प्रबंधन, रिक्त सभी मेरे पात्र।
कहाँ अब वन में अन्न मिलेगा, गृहस्थ वचन कैसे फलेगा। निर्धन, निर्बल हम विधाता, कुछ उपाय करो दाता।
अनादर न ऋषि का हो, श्राप न कोई पति को हो।
 द्रौपदी यह चाह रही है- कैसे मान रखूँ भवन का, वन में नहीं कोई अपने मन का।
 
अभी-अभी स्नान को भेजा, मिलेगा समय उचित है सोचा। समस्त उपाय देखे, कीन्हें, कुछ हाथ नहीं लीन्हें।
कैसे ऋषि श्राप टालूँ, कैसे कुटुंब बचा लू।
 क्रोधी स्वभाव उनका, करूँ सभी कार्य उनके मन का। द्रौपदी मन में सोच रही है.…
पाँचों पांडव व्याकुल बहुत हैं, चिंता लकीरें मस्तक बहुत है। कभी बैठे, कभी उठ जाते, चारों ओर चक्कर लगाते। सूझता नहीं कैसे भोज कराये, ऋषियों का उदर भराये। द्रौपदी अब लाज हमारी, तुम्हरे हाथों ही सेवा भारी।
सुन के वचन अति दुखभरे, बंद किये नैन किवारे।
किस विधि मिल हम यह विपति टारै।
 पांडव द्रौपदी मुख निहार रहे है… ……
हे!दुख तारण, बंधन हारण ‌‌, पखारूँ तुम्हरे चारण।
सुनों पुकार फिर विपदा आई, दूर करों संकट ओ! कन्हाई। आँसू झरते नदियाँ समान, रज में सनते मोती समान। हृदय पुकार कृपालु सुने, दीनदयाल कोमल बड़े।
 हम सबके संग आज आप हो जाऐ खड़े।
 दुख सुनते सबका, प्रेम करते अपार।
हो जो निश्छल, निष्कपटी, उसे हाथों लेते त्रिपुरार।
 हाथ जोड़ याज्ञसेनी रही पुकार ……
 द्रौपदी की सुनके पुकार, मंद मुस्काये गिरिराज किशोर। शीघ्र कुटिया पर पहँचे, मोहन।
सखा थोड़ा सा मुझे करा भोजन।
घबराई द्रौपदी, पीछे हट गई, भोजन कहाँ ? शीघ्रता में कह गई।
पात्र सभी माँज दिये, धो, और सुखा दिये।
अब मैं क्या तुमको खिलाऊँ, काहे का तुमको भोग लगाऊँ।
 घबराकर द्रुपद कन्या ने व्यथा सुनाई ……
 चरणों में कृष्ण के गिर गई, आँखों में आसूँ भर गई। अर्जुन, भीम, नकुल, सहदेव, संग में युधिष्ठिर, करते प्रार्थना जोड़े कर।
बड़ी दुविधा हमकों बचाओं।
श्राप से बचने का मार्ग सुझाओ।
 भोजन कैसे प्रभु तुम्हें कराये।
 कैसे ब्राह्मणदेव को भोज पवाये।
कुछ चिंता प्रभु हमारी घटाएँ। क
र जोड़ वासुदेव से अपना मार्ग प्रशस्त करायें ……
 फिर मुस्काये मनमोहन, सुन्दर जिनकी चितवन।
ला क्षुधा के भाव, मुख मलीन कर लिया।
हुआ न जाता खड़ा मुझे, हस्त उदर पर फेर लिया।
 चिंतित पाँचों भ्राता, केशव का मुख निहार रहे।
क्षमा भाव लिये दीन -हीन कर जोड़ रहे।
कुछ तो उपाय करों गोविन्द, हम तुम्हारी शरण रहे।
 संकट में न छोड़े हाथ, विनती यही कर रहे।
 कृष्ण को विस्मिय से देख रहे ……
पहले तुम अक्षत पात्र रखों, तभी कुछ कर पाऊँगा।
 तभी नवीन नूतन तुमको मैं दे पाऊँगा।

उससे पहले भानु को तुम करो प्रणाम, तभी सफल होगें तुम्हारे बिगड़े काम।
कृष्ण ने कहा यथा तथा उन्होंने किया कार्य।
शीश झुका दिवाकर को किया प्रणाम………
 पात्र हाथ में उन्होंने दिया कृष्ण के।
 कृष्ण को देखे बड़े आस से।
 पात्र देखे बड़े ध्यान से, कहीं एक अक्षत दिखाई दिया। उँगुली से उठा उसे , प्रेम भोग लगा लिया ।
 अनुपम शांति की मुख पर रेखा खींच गई।
 तुरंत क्षुधा दमोदर की शांत हो गई।
आँखे करके बंद बड़े भाव से करते भोजन ग्रहण…… जाओ ब्राह्मण देव को लो बुलवा।
भोजन का हुआ प्रबंध न करो चिंता।
आश्चर्य से युधिष्ठिर ने कृष्ण को ताका। पर सम्मुख उनके कुछ कह न सका।
चल दिया बुलाने, पहुँचा सरवर।
देख बड़े आश्चर्य चकित हुए, आँखे हो गई बड़ी।
 फिर भी भय से कहा, मुनिवर चले कुटी पर, भोजन तनिक पा लीजिये।
भय से युधिष्ठिर ने कर जोड़ किया निवेदन ……
 कर रहे जल क्रीड़ा अब जल से उठ न पा रहे सब।
 फिर हाथ जोड़ युधिष्ठिर को बड़े प्रेम से दिये बोल।
भोजन अब न कर पायेंगे, उदर पूर्ण भरा हुआ है।
 युधिष्ठिर करो क्षमा, जो जतन तुमने बहुत किया है।
 हो तुम उदार, निर्मल और पवित्र हो।
 संसार में तुम सर्वश्रेष्ठ हो।
न कोई बिगाड़ सके उसका, कृष्ण हो जिनके मित्र। परमात्मा भी रक्षा जिनका हृदय स्वच्छ हो……
विदा करो अब हमकों, सत्कार तुमने खूब किया।
फलते फूलते रहो सदा हमने तुमको आशीष दिया।
 हाथ जोड़ नतमस्तक हो, किया प्रणाम पुनः -पुनः।
 प्रेम सहित किया फिर उन्हें किया विदा।
हाथ जोड़ गिरिधर समक्ष हुआ परिवार खड़ा।
 तुम्हारे मार्गदर्शन से आज संकट टला।
तुम अनंत, अगोचर हो, तुम ही पालन कर्ता।
 तुम ही दुख हर्ता और हमारे सुख कर्ता।
तुमसे ही संभव है कल्याण हमारा तुम ही मुरारी प्रेम हमारा।
कृष्ण को करते कोटि -कोटि धन्यवाद …


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract