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Lokanath Rath

Abstract

3  

Lokanath Rath

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सावन के साथ......

सावन के साथ......

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ये नील गगन कुछ कह रहा है

और धरती भी कुछ सुन रही है

दोनों देखो प्यार के रंगों मे रंगे है

आयो तुम बादल बन जाओ

मैं भी सजके घटा बन जाऊँ

दोनों मिलके यूँ कुछ गुन गुनाएं

सावन के साथ ही बहते जाते हैं ....


देखो नील गगन चमक रहा है

धरती भी जैसे खूब आहें भरी है

दोनों का दिल भी तो मचल रहा है

और तुम मेरे पास आजाओ

मे भी तुमसे पूरा समा जाऊँ

दोनों मिलके फिरसे एक हों जाएं

सावन के साथ ही बहते जाते हैं ........


ना ये नील गगन की कोई भूल है

ना धरती की भी कोई और चाल है

ये अब दोनों का मिलन की बेला है

फिर तुम कियूँ छुप रहे हों

मे तो कबसे यहाँ तैयार हूँ

ये तो अब मिलन की बेला आई है

सावन के साथ ही बहते जाते हैं .......


देखो ये नील गगन भी रो रहा है

धरती उसके आँसू को पी रही है

उसमे उनकी प्यार दिख रहा है

तुम जो कभी उदास रहोगे

मेरे गले मे आकर मिलोगे

कहोगे, चलो कुछ गुन गुनाते हैं

सावन के साथ ही बहते जाते हैं ....


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