STORYMIRROR

Lokanath Rath

Abstract

3  

Lokanath Rath

Abstract

सावन के साथ......

सावन के साथ......

1 min
175


ये नील गगन कुछ कह रहा है

और धरती भी कुछ सुन रही है

दोनों देखो प्यार के रंगों मे रंगे है

आयो तुम बादल बन जाओ

मैं भी सजके घटा बन जाऊँ

दोनों मिलके यूँ कुछ गुन गुनाएं

सावन के साथ ही बहते जाते हैं ....


देखो नील गगन चमक रहा है

धरती भी जैसे खूब आहें भरी है

दोनों का दिल भी तो मचल रहा है

और तुम मेरे पास आजाओ

मे भी तुमसे पूरा समा जाऊँ

दोनों मिलके फिरसे एक हों जाएं

सावन के साथ ही बहते जाते हैं ........

r>

ना ये नील गगन की कोई भूल है

ना धरती की भी कोई और चाल है

ये अब दोनों का मिलन की बेला है

फिर तुम कियूँ छुप रहे हों

मे तो कबसे यहाँ तैयार हूँ

ये तो अब मिलन की बेला आई है

सावन के साथ ही बहते जाते हैं .......


देखो ये नील गगन भी रो रहा है

धरती उसके आँसू को पी रही है

उसमे उनकी प्यार दिख रहा है

तुम जो कभी उदास रहोगे

मेरे गले मे आकर मिलोगे

कहोगे, चलो कुछ गुन गुनाते हैं

सावन के साथ ही बहते जाते हैं ....


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract