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Yudhveer Tandon

Comedy

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Yudhveer Tandon

Comedy

साठ के पार

साठ के पार

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सठिया गए, हुए जो भी साठ के पार

जीवन भर वे जीते, बुढ़ापे से गए हार।

हर चुनौती को पाट, उम्र से गए हार

सठिया गए, हुए जो भी साठ के पार।


सब खपा कर, आश्रितों को दिया संवार

इच्छाएँ त्याग, लाई उनके जीवन में बहार।

बच्चों के बचपन में ही, दिया स्वप्न गुज़ार

सठिया गए, हुए जो हैं अब साठ के पार।


नवजात से हुए, अब फिर एक बार लाचार

बदल रहा धीरे धीरे, फिर अपना व्यवहार।

है ये कुछ और नहीं, बस है समय की मार

सठिया हैं गए, हुए जो हैं अब साठ के पार।


फिर भी कभी कभार, छाये जो मन में खुमार

जवानी की याद में, दिल हो जाये बेक़रार।

किसी अधूरी आस की, सुनाई दे जो पुकार

सनक गए हो या भूल गए, हो साठ के पार।


तन चमन है उजड़ा, मन गुलशन गुलजार

बूढ़े ही सही, पर हैं अपने भी दोस्त यार।

बचे हैं भले ही, दिन जिंदगी के दो चार

उनमें भी क्यूँ न हल्का हो, कन्धों का भार।


क्या हुआ जो हुए हैं ,हम साठ के पार

हो चुका अब तक अनुभव का अम्बार।

ताउम्र भरा हमने ,घर का भण्डार अपार

वक़्त आया अब मजे का ,हैं साठ के पार।



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