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Kusum Joshi

Abstract

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Kusum Joshi

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साथी हाथ बढ़ाना

साथी हाथ बढ़ाना

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हर सांझ के बाद ओ राही आता है एक सवेरा,

ग़म में ना रोना आशा संजोना सिखाता है ये सवेरा,

ग़म के काले बादल जल्दी छंट जाएंगे,

राह कठिन भले हो मंज़िल हम ही पाएंगे,


जो छूट गया सो गया अब उस पर क्या पछताना,

मैं साथ तुम्हारे हूँ तुम भी अब हाथ बढ़ाना।


पदचिह्न तुम्हारे जग में पहचान बनाएँगे ही,

जो आंसू आज गिरे हैं मोती बन जाएंगे ही,

जो सींची क्यारी तुमने वो फ़ूल खिलाएगी ही,

मेहनत तेरी पल पल की एक दिन रंग लाएगी ही,


ना रोना तुम किस्मत पर अपनी किस्मत खुद ही बनाना,

मैं साथ तुम्हारे हूँ तुम भी अब हाथ बढ़ाना।


चोट हथौड़े की ही पत्थर को भगवान बनाती,

सौ बार भी गिरकर मकड़ी हिम्मत नहीं गवाती,

बिन जोते खेत को राही कोई बीज नहीं पनपता,

बिन सागर तल में उतरे मोती ना कोई मिलता,


हर कर्म के साथ जुड़ा है फ़ल का ये अद्भुत नाता,

जो जैसा कर्म है करता वो वैसा ही फल पाता,

कर्म को ही जीवन में तुम अपने हथियार बनाना,

मैं साथ तुम्हारे हूँ तुम भी अब हाथ बढ़ाना।


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