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Vinay Singh

Inspirational

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Vinay Singh

Inspirational

सार्थक दीपोत्सव

सार्थक दीपोत्सव

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मार्ग थोडा है,घना,

दर्द का,एहसास हो,

भूख थोडी हो,अगर,

खाने को,थोडा पास हो,

फिर भी,अपनी मौत से,

ऐ मनुज,तुम न लड़ो,

बेड़ियाँ अच्छी हैं,ये,

कुछ वक्त की,आगे बढो,

अस्तित्व की रक्षा कठिन,

थोडी सी कठिनाई सहो,

मन को थोडा शांतकर,

घर में हीं,अपने रहो,

बहुत सी,बाधा यहाँ पर,

पूर्वजों ने है लड़ी ,

आज तब,अस्तित्व की,

विस्तृत इमारत है खडी,

थोडी सी कठिनाई अगर,

दीखती हो सामने,

तुम सबल अस्तित्व हो,

ठोकरों से चूर कर दो,

पत्थरों को गढ के तुनें,

देव अपना रच लिया,

आज इस निर्मम,अणु को,

रौंद कर,मजबूर कर दो,

साख के तेरे गुलिस्ते,

कल तुम्हें मिल जायेंगे,

आज घर की साग,खा लो,

कल व्यंजनों को खायेंगे,

राह की मजबूरियों में,

मनुष्य मुश्किल में,घिरे हैं,

प्राण का सिंचन करा दो,

दो रोटियां,उनको खिला दो,

भूख से व्याकुल नरों को,

कुछ सबल मिल जायगा,

मार्ग कितना हीं कठिन हो,

विस्तृत डगर कट जायेगा,

कल तुम्हें विस्तृत धरा पर,

समय की जलती लकीरें,

साथ लेकर चल पडेंगी,

भीड के विस्तृत सफर में,

आज अपने झुरमुंटों से,

चहक कर,जो हैं बुलाती,

कोयलों की कुक तुमको,

गान यदि उत्तम सुनाती,

आज इन दुर्लभ क्षणों को,

स्मरण में तुम समेटो,

शक्ति संचय करके तुम,

अस्तित्व को नव विभा दो,

जो समय के जख्म पर,

जीवन की बाजी हैं लगाये,

डाक्टरों की फौज हो या,

सुरक्षा की विस्तृत शिरायें,

तुम इन्हें सम्मान देकर,

घर से हीं,थाली बजा दो,

शंख और घडियाल के संग,

चाय की प्याली बजा दो,

और यदि करना हीं चाहो,

मन में यदि अनुराग हो,

देव दुर्लभ जीव के प्रति,

थोडा सा भी यदि त्याग हो,

एक दीपक प्रेम की,

छत से,सबको साथ लेकर,

दूरियाँ विस्तृत बनाकर,

मन में लेकिन,हाथ लेकर,

क्षितिज से आकाश तक,

उज्जवल घनेरा और दुर्लभ,

प्रेम पूर्वक तुम जला दो।



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